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Showing posts from November, 2021

पद्मश्री तुलसी गौड़ा 2021

 पद्मश्री को सम्मानित करती कर्नाटक की पर्यावरण कार्यकर्ता तुलसी गौड़ा,  जिनको वन विश्वकोष के नाम से भी जाना जाता है।   तुलसी का जन्म कर्नाटक के हलक्की जनजाति के एक परिवार में हुआ था। बचपन में उनके पिता चल बसे थे और उन्होंने छोटी उम्र से मां और बहनों के साथ काम करना शुरू कर दिया था। इसकी वजह से वे कभी स्कूल नहीं जा पाईं और पढ़ना-लिखना नहीं सीख पाईं। 11 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई पर उनके पति भी ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहे।  अपनी जिंदगी के दुख और अकेलेपन को दूर करने के लिए ही तुलसी ने पेड़-पौधों का ख्याल रखना शुरू किया। वनस्पति संरक्षण में उनकी दिलचस्पी बढ़ी और वे राज्य के वनीकरण योजना में कार्यकर्ता के तौर पर शामिल हो गईं। साल 2006 में उन्हें वन विभाग में वृक्षारोपक की नौकरी मिली और चौदह साल के कार्यकाल के बाद वे आज सेवानिवृत्त हैं। इस दौरान उन्होंने अनगिनत पेड़ लगाए हैं और जैविक विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।    72 साल की तुलसी गिनकर नहीं बता सकती कि पूरी जिंदगी में उन्होंने कितने पेड़ लगाए। 40 हजार का अंदाजा लगाने वाली तुलसी ने करीब...

पद्मश्री लुलारी जी 2021

 12 साल की उम्र में शादी, गरीबी की मार अलग... घरों में काम करने वाली दुलारी ने खुद नहीं सोचा था कि उनका संघर्ष उन्हें पद्मश्री दिलाएगा। देश का वो सम्मान जिसे पाने की चाह हर किसी में होती है। लेकिन दुलारी को पद्मश्री पुरस्कार मिलने के पीछे छिपा है उनका अनवरत संघर्ष... वो संघर्ष जिसमें एक पुरुष तक हार मान जाए लेकिन 54 साल की दुलारी ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया। बिहार के मधुबनी जिले के रांटी गांव की रहने वाली दुलारी का माता-पिता ने 12 साल की उम्र में ही  विवाह कर दिया। सात जन्मों के बजाए दुलारी सात साल में ही ससुराल से मायके वापस आ गईं और वो भी 6 महीने की बेटी की मौत के गम के साथ। मायके से ही दुलारी ने फिर से संघर्ष शुरू किया। घरों में झाड़ू-पोंछा लगा कर कुछ आमदनी हो जाती थी। धीरे धीरे हाथों में पोंछे की जगह कूची ने ले ली।  हाथों में जादू ऐसा कि एक वक्त पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी दुलारी की तारीफ की। किस्मत कब किसे किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दे, कौन जाने। यही दुलारी के साथ हुआ। अपने ही गांव में मिथिला पेंटिंग की मशहूर आर्टिस्ट कर्पूरी देवी के घर दुलारी को झाड़ू-...

पद्मश्री 2021

 #मेरा_अभीमान_मेरा_प्रधानमंत्री💪 नंगे पैर, अधनंगे बदन.... राष्ट्रपति भवन की दहलीज.... ताज्जुब है ना.... संतरे बेचने वाले हरकेला हबजा पद्मश्री पाते हैं। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए निशुल्क विद्यालय खोलने का काम किया। वह नंगे पांव राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री का पुरस्कार लेने के लिए आते हैं। सवाल यह नहीं है कि उन्हें पुरस्कार उनके काम के लिए मिला....! प्रश्न यह है कि उनके काम को किसी ने देखा...! प्रधानमंत्री के आवास के भीतर रहने वाले व्यक्ति ने सुदूर कर्नाटक में जनसेवा का काम करने वाले शिक्षा की अलख जगाने वाले हरकेला हबजा को पद्मश्री के लिए नामित किया...... दूसरी तस्वीर तुलसी गोवडा की है.... शरीर को ढकने के लिए वस्त्र नहीं है लेकिन राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री का पुरस्कार पाने के लिए पहुंच रही हैं। पर्यावरण के लिए काम किया है। 30,000 से ज्यादा वृक्षों को लगाया है। लेकिन उनके काम को मान्यता देने का काम एक चाय बेचने वाले ने किया है जो चाय बेचते बेचते प्रधानमंत्री आवास तक पहुंच गया है। जब जनता के बीच के लोग सत्ता के गलियारों में  बैठेंगे तो जनता के बीच में काम करने वाले लोगों क...

टीवी सीरियल्स की नौटकी

 ये टीवी सीरियल्स में कौन से परिवार होते हैं भाई जिसमें पति ऐसी पत्नी के साथ होता है जिसे वो पत्नी मानता नहीं और जिसे मानता है पत्नी वो भी उसी घर में रहती है फिर दोनों औरतें पति को हासिल करने के लिए चालें चलती हैं, जिसमें पत्नी की मां और उसके पिता, जो कि दरअसल उसके पिता नहीं हैं बल्कि पिता माने जाते हैं और ये सर्वज्ञात तथ्य रहता है, शामिल होते हैं और साथ ही जो दूसरी औरत होती है उसकी मां और बहन भी उसी घर में रहते हैं। इसी घर में ननद होती है वो भी शादी-शुदा  जिसकी अपनी ससुराल से नहीं बनती इसलिए उसके पति घरजवाई बनकर रहते हैं उसी घर में। साथ में ननद की एक सहेली और उसका पति, जो कि उसी घर के सो कॉल्ड मालिक का एम्प्लॉय होता है, भी रहता है। मतलब चल क्या रहा होता है भाई🤔 अच्छा हां, इन सीरियल्स की सबसे खास बात ये रहती है कि सबको सबकी चालें मालूम होती है लेकिन सब सबको बर्दास्त करने के लिए मजबूर होता है पता नहीं क्यों? मतलब ऐसा घर कहां बनता है भाई? किसी को मालूम है क्या?? मतलब टीवी सीरियल के नाम पर कुछ भी #संदीप_यदुवंशी  https://sk4635686.blogspot.com/?m=1

बलिया स्थापना दिवस 1 नवम्बर

 #बलियानामा  बहुत छोटा था तब ये भी कहाँ पता था कि लोक सभा क्या होता है और विधानसभा क्या होता है। लेकिन उस वक़्त नेताओं की गाड़ियों और आसमान में उड़ते हेलिकॉप्टर ये बताने के लिए काफ़ी थे कि इलेक्शन आ चुका है और छोटे-बड़े खाली मैदान पर "जिंदाबाद-मुर्दाबाद" के नारे लागाए जा रहे  थे।  लेकिन आज भी इस जिले को एक नेता की कमी खलती है #चंद्रशेखर_जी शायद उनकी कमी कोई पूरा नहीं कर सकता है। रहने को तो कही भी रह ले पर दिल❤ बलिया में ही रह जाता है  ज़िन्दगी भले कही भी जी ले पर मरना तो मै बलिया में ही चाहता हूँ   क्योंकि मुक्ती और मोक्ष बलिया के सिवा कहीं मिलेगा नहीं  क्योंकि तेरे हर कण-कण में मेरी पहचान है। "वीरों की धरती जवानों का देश  बागी बलिया उत्तर प्रदेश" भृगुक्षेत्र मनोहर है बलिया, बलियाग रहा बहुकालन से। बलि राजन की धरती तप की, यह शोभित है भृगवाश्रम से।। स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले, बागियों की धरती बलिया के स्थापना दिवस पर आप सभी को बधाईयां, शुभकामनाएं.... #संदीप_यदुवंशी  https://sk4635686.blogspot.com/?m=1

विरोध

 विरोध एक अजीब सी बात है विरोध करना ! पक्ष और विपक्ष दोनों है इस पर बहस चलता है। तर्क और कुतर्क भी होता है इन सब को करते समय चलता है। पर फर्क उस व्यक्ति को पड़ता है जो अपने रोजमर्रा की ज़िंदगी में हारता है और हारता हुआ फिर से  अगली सुबह उस विरोध में रहता है। कुछ यूँ ही मैं भी विरोध करता हूँ पर अब किसी के छल विरोध से खुद और खुद को विरोधी देखा। ये समाज उनका है  जो मेरे विरोध को  अपने सम्मान और पहचान  के रूप में मुझे  मौत तक ले आई है। विरोध करना भी अब विरोध है सब खोकर कोई विरोध नही। मुझे नही करना ये संघर्ष इश्क़ है मुझे इस विरोध से पर मैं भी अकेला पत्थर हूँ और अब टूट चुका हूँ। ना कोई विरोध है और ना मैं विरोधी हूँ।🙏 #संदीप_यदुवंशी  https://sk4635686.blogspot.com/?m=1

धनतेरस

 आज धनतेरस उत्सव है। एक सामान्य चलन था कि इस दिन झाड़ू खरीदते हैं। अब क्या झाड़ू खरीदने के लिए भी किसी त्यौहार की जरूरत होती है। हालांकि ये प्रतीकात्मक ही है लेकिन इस प्रतीक के गहरे अर्थ है। झाड़ू खरीदने का आशय स्वच्छता से है। घर और आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए झाड़ू की प्रतीकात्मक खरीदारी का चलन शुरु हुआ होगा। क्योंकि आगे दो दिन बाद दिपावली है। सब साफ सफाई करनी है तो धन तेरस को झाड़ू खरीदने का दिन बना दिया।  लेकिन अब बदलते बदलते बाजार ने इसे बर्तन, सोना चांदी और गाड़ियों की खरीदारी का त्यौहार बना दिया है।  परंतु धनतेरस झाड़ू खरीदने का भी त्यौहार नहीं है। यह भगवान आरोग्य के देवता, नारायण स्वरूप भगवान धन्वंतरी की जयंती है। साफ सफाई के लिए सांकेतिक खरीदारी का दिन भी संभवत: इसलिए ही चुना गया होगा की स्वच्छता में ही आरोग्य है। इसलिए भगवान धन्वंतरी  जयंती को स्वच्छता से जोड़ा गया होगा। लेकिन आश्चर्य देखिए कि खरीदारी शेष रह गयी और भगवान धन्वंतरी को भूल गये।  आज के दिन भगवान धन्वंतरी को याद करिए क्योंकि धन अकेले पैसा नहीं होता। असली धन है स्वास्थ्य। आरोग्यं स...

तमिल एक्टर विशाल

 सरल और साधारण से दिखने वाले इस शख्स को आज से पहले मैं भी नहीं जानता था "पुनीत राजकुमार" की मृत्यु के बाद कल जब तमिल के स्टार 'विशाल' का नाम सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने लगा तब थोड़ी सी उत्सुकता हुई कि आखिर यह कौन है??? और आज जब इनके बारे में पढ़ा तो लगा कि हम अपने गलत रोल मॉडल चुन रहे हैं ??? असली रोल मॉडल्स के बारे में तो हमें, ना बताया जाता है, और ना ही कभी उनका प्रचार-प्रसार किया जाता है और उन्हीं रोल मॉडल्स में से एक हैं विशाल💐 45 फ्री स्कूल, 26 अनाथालयों, 19 गौशालें और 16 ओल्ड एज होम की स्थापना करने के साथ साथ 1800 छात्रों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने वाले एक्टर पुनीत राजकुमार के निधन के बाद अब उन 1800 छात्रों की देखभाल की जिम्मा तमिल एक्टर विशाल ने उठाया है.... सिंपल से दिखने वाले साउथ इंडस्ट्री के #सुपरस्टार एक्टर विशाल ने ट्विटर पर पुनीत के निधन के बाद लिखा था ‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि मेरे अच्छे दोस्त पुनीत राजकुमार अब नहीं रहे. उनकी आत्मा को शांति मिले. इस मुश्किल वक्त में मेरी संवेदना परिवार के साथ है. #कन्नड़ #फिल्म इंडस्ट्री के लिए यह एक बड़ी क्षति...

आज कल के बच्चो में नास्तिकता के कारण

 आजकल के युवकों की नास्तिकता का कारण मैं बता रहा हूँ ध्यान से सुनिये- एकाएक तो माँ के गर्भ से कोई युवक होकर या युवती होकर तो प्रकट नहीं होता...!  आजकल के बच्चे हैं मोबाइल से खेलते हैं, टेलीविजन से खेलते हैं, कम्प्यूटर से खेलते हैं। वे जब कोई प्रश्न कर देते हैं माता-पिता को, तो प्राचीन ढंग के जो माता-पिता हैं वे संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाते।  पुरानी बात यह है कि 'तुम तो नास्तिक हो' कहकर, डाँटकर पिण्ड छुड़ा लेते थे।  हमने देखा है वृन्दावन आदि में जो महात्मा किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाता था तो वे कहते थे - 'नास्तिक कहीं के, तुम अनधिकारी हो'।  आजकल किसी को नास्तिक कह दें, अनधिकारी कह दें तो वह समझेगा कि इनको स्वयं को ही कुछ आता नहीं है।  आजकल मोबाइल आदि से खेलने वाले जो बच्चे हैं वे ही युवक होते हैं, उनके प्रश्नों का उत्तर दे पाना आधुनिक माता-पिता के लिए बड़ा कठिन है। आधुनिक जो बच्चे हैं,  वे जो प्रश्न करते हैं उसके उत्तर के लिए क्या चाहिए? दर्शन, विज्ञान और व्यवहार में सामञ्जस्य साधने की आवश्यकता है। स्वयं ही बहुत तैयारी की आवश्यकता है। मैं संकेत करता ...

तजुर्बे

 अब मैं.. तजुर्बे के मुताबिक़,,,खुद को ढाल लेता हूं,,! कोई प्यार जताए तो,,,जेब संभाल लेता हूं,,,!! नहीं करता थप्पड़ के बाद,,,दूसरा गाल आगे,,! खंजर खींचे कोई,,, तो तलवार निकाल लेता हूं,,,!! वक़्त था सांप की,,,परछाई डरा देती थी,,! अब एक आध मै,,,आस्तीन में पाल लेता हूं,,!! मुझे फासने की,,,कहीं साजिश तो नहीं,,! हर मुस्कान ठीक से,,,जांच पड़ताल लेता हूं,,,!! बहुत जला चुका उंगलियां,, मैं पराई आग में,,! अब कोई झगड़े में बुलाए,, तो मै टाल देता हूं,,,!! सहेज के रखा था दिल,,,,जब शीशे का था,,! पत्थर का हो चुका अब,,, मजे से उछाल लेता हूं......!!! #संदीप_यदुवंशी  https://sk4635686.blogspot.com/?m=1

राम मंदिर के वो दिन

 किसी को वो वक्त भी याद आता है क्या..... जब वेटिकन की पालतू इटालियन की कठपुतली महामौन सरदार के वक्त राम जन्मभूमि के वकील कोर्ट से भगवान राम पर लगे टेंट को बदलने हेतु प्रार्थना कर कहते थे "श्रीराम मंदिर पर लगा टेंट फट चुका है, बदलवा दीजिए"🙏 ऐसा लगता था की किसी ने सीधे दिल पर वार कर हमारी बेबसी पर हमें बुरी तरह अपमानित कर रहा है।।🙏  परन्तु फिर भी हमें कांग्रेस को सपोर्ट करना चाहिए क्योंकि वही एकलौती ऐसी पार्टी है जो देश और बेरोजगारी महंगाई के लिए फिक्रमंद है। और ७० साल से बेरोजगारी के खिलाफ लड़ रही है।   वोह अलग बात है की इस साल बेरोजगार लोगों ने 3 लाख करोड़ की दिवाली मना डाली जिसमे 40 हज़ार करोड़ के पटाके जला डाले और 75000 करोड़ का सोना खरीद डाला  वो अलग बात है कि उस पार्टी का युवराज भले ही बेरोजगार हो। जय श्रीराम ⛳🙏 #संदीप_यदुवंशी https://sk4635686.blogspot.com/?m=1

रामलिला

 रामलीला  आज जब दलितों के नाम पर राजनीति होते देखता हूँ और समाज के एक वर्ग को दलित हितचिंतक बन हिन्दू देवी-देवताओं को कोसते देखता हूँ तो हँसी भी आता है और ऐसे लोगों की बुद्धि पर तरस भी जो ये तक नहीं जानते कि छुआछूत या जाति भेद सनातन धर्म का रचा नही है बल्कि स्वार्थ सीधी के लिए रचित  एक राजनैतिक कुचक्र है। ऐसे में राम जी और शबरी मैय्या का मिलन याद आ जाता है। राम की आधार सीता थी। सीता अर्थात पृथ्वी की पुत्री, जगत की आधार, सबका आलम्बन। आधार खोने से राम जड़-हीन हो व्याकुल हो उठे। वे चर-अचर सबसे पूछते फिरे - "हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥" तुलसीदास लिखते हैं कि राम सामान्य मनुष्यों की लीला कर रहे हैं अतः वे पूर्णकाम, आनन्द राशि, अजन्मा और अविनाशी हो कर भी मनुष्यों की भाँति आतुरता दिखा-दिखा कर विलाप कर रहे हैं -  "पूरनकाम राम सुख रासी। मनुजचरित कर अज अबिनासी॥" सीता माता की खोज कठिन थी पर पहला संकेत जटायु ने दिया, दूसरा संकेत कबन्ध नामक दानव ने दिया। उसके उपरांत शबरी की कुटिया में उन्हें पम्पानगरी जाने का संकेत मिला। शबरी भीलनी है, समाज की वर्ग-श्रेणी ...

लालकृष्ण अडवाणीजी का जन्मदिन

 अगर सावरकर जी ने हिंदुओं को हिंदुत्व की विचारधारा दी, हेडगेवार जी ने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए संघ को खड़ा किया, हिन्दूत्व को राजनैतिक धरातल पर स्थापित करने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी और दीनदयाल उपाध्याय जी ने जनसंघ को खून-पसीने से सींचा तो लालकृष्ण आडवाणी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने जनसंघ से जन्मी भाजपा का ध्वजवाहक बनकर देश में हिन्दू राजनीति का मार्ग हमेशा के लिए प्रशस्त कर दिया।  जन्मभूमि आंदोलन की रथयात्रा ने ही देश की राजनीति के हिंदूकरण में सबसे सशक्त महती और क्रांतिकारी भूमिका निभाई इससे कौन इंकार कर सकता है? और राममंदिर आंदोलन से भाजपा को पहली बार सत्ता के शिखर पर अडवाणी जी ने पहुंचाया यह भी उतना ही सच है। धूर्तों मक्कारों से भरी राजनीति में हिन्दू राजनीति के लिए किए गए इस नेता के त्याग लोगों ने नहीं देखे, जहाँ सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद के झूठे त्याग को कांग्रेसियों ने सम्मान के लबादे से ओढा दिया वहीं पार्टी के लिए प्रधानमंत्री पद का त्याग करने वाले आडवाणी अपनी पार्टी के लोगों द्वारा भी मज़ाक के पात्र बनाए गए। राजनितिक शुचिता के लिए इस नेता ने सांसद का ...

जय भीम की समीक्षा

 जय भीम वास्तविक घटनाओं पर बनाई गई एक अच्छी  फिल्म है। इस फिल्म में सभी वास्तविक नामों को बरकरार रखा गया है सिवाय मुख्य खलनायक के।  मुख्य खलनायक जिसका असली नाम "एंथनी सामी" है, उसे फ़िल्म मे  "गुरुमूर्ति" नाम  दिया गया है। इस प्रकार एक ईसाई विलेन को  हिंदू वन्नियार बना दिया गया है ताकि जातिगत भेदभाव के एजेंडे को बढ़ाया जाए। वास्तविक जीवन मे वो एक ईसाई उप-निरीक्षक था जिसने पीड़ितों को फंसाया और उन्हें प्रताड़ित किया था। लेकिन फिल्म में, उनका नाम, धर्म और जाति बदल दी गई है ताकि इसे ऊंची जाति के हिंदुओं द्वारा निचली जाति पर किए गए अत्याचारों के रूप में दिखाया जा सके। इतना ही नहीं, ब्राह्मणों के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल यह बताने के लिए भी किया गया कि वे एक नीच अविश्वसनीय समुदाय हैं। जय भीम फ़िल्म मे द्रविड़ राजनीति को खुश करने के लिए हिंदी विरोधी तत्व भी जोड़ा गया है। एक सीन में प्रकाश राज एक अफसर को हिंदी बोलने पर थप्पड़ मारते हैं। लेकिन फिल्म के हिंदी दर्शकों को परेशान न करने के लिए इस दृश्य को उसी फिल्म के हिंदी संस्करण में हटा दिया गया है। फिल्म बिरादरी...

राम मंदिर का संघर्ष

 9 नवम्बर  आज के दिन ही तिरपाल हट गया था  समाज की कमजोरियां थी कि हम अयोध्या तक नहीं बचा सके। मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद खड़ी हो गई। जब लड़कर वापस मंदिर नहीं बना सकते थे तब राजा जय सिंह ने 1717 में अपना खजाना खोल दिया और पूरी जमीन ही खरीद ली। हिन्दू मस्जिद के बाहर खड़े होकर पूजा करने लगे। इस बीच कई छोटी बड़ी लड़ाईयां चलती रही। अंग्रेज राज आया और 28 नवंबर 1858 को 25 निहंग सिखों ने मस्जिद कब्जा ली और ये मामला पहली बार अंग्रेजी कानूनी कागजों में आया। पुलिस लगाकर उन्हें बाहर निकाला गया और रेलिंग लग गई। हिन्दू रेलिंग के उस पार खड़े होकर पूजा करने लगे। 1883 में मुंशी राम लाल और राममुरारी राय बहादुर का लाहौर निवासी कारिंदा गुरमुख सिंह पंजाबी वहाँ पत्थर वग़ैरह सामग्री लेकर आ गया और प्रशासन से मंदिर बनाने की अनुमति माँगी, मगर डिप्टी कमिश्नर ने वहाँ से पत्थर हटवा दिए 29 जनवरी 1885 में ये मामला पहली बार कोर्ट पहुंच गया।  22-23 दिसंबर 1949 की रात को मस्जिद के अंदर मूर्तियां रख दी गई। 1980 के दशक में कारसेवा शुरू हुई और 1992 में ढांचा गिरा दिया गया। अगले 50 वर्ष हाई कोर्ट और फिर ...

छठ पूजा इक्कीसवी शताब्दी

 इक्कीसवीं शताब्दी में नालेज इज पावर है... है ना.....और  छठ आर्यावर्त के उस इलाके का उत्सव है जहाँ पंडित जी के पतरा से ज्यादा ज्ञान पण्डिताइन के अंचरा में रहता है। सनातन विरोधियों को आमंत्रित करता हूँ कि बिहार और पूर्वांचल में विशेष रूप से मनाए जाने वाले दुनिया के सबसे 'इको फ्रेंडली' ओर अपने मूल में संभवतः सबसे 'फेमिनिस्ट' त्योहार  छठ महापर्व का लैंगिक विमर्श या जातीय विमर्श के लिहाज से अध्ययन करें। आज जब बाजार ने 'फेमिनिस्ट डिस्कोर्स,देहमुक्ति इत्यादि' को ही बाजारवाद का हथियार बना दिया है, छठ अपने मूल स्वभाव में सह-अस्तित्व और धारणीय विकास के साथ साथ स्त्री सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण उत्सव प्रमाणित हुई है। फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास 'परती परिकथा' का एक पात्र स्त्री लोकगीतों के माध्यम से लोकमन और लोकजीवन को समझने की कोशिश करता है। अब इसी प्रकाश में देखिए ना छठ पर्व के इन अमर-गीतों को .... "केरवा जे फरेला घवद से ओहपे सुग्गा मेड़राय..."...एक ही गीत में तुम्हारे सारे सैद्धांतिक 'सस्टेनेबल डेवलपमेंट' और 'बायोडायवर्सिटी प्रिजर्वेशन' स...

आइए जाने छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमी को जाने

 आइए, छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानें। कल से ही शुरु हो चुके चार दिनों तक चलने वाला छठ पर्व की शुरुआत नहाय- खाय (स्नान कर कद्दू की सब्जी और चावल भोजन करने से) होगी। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को यह व्रत मुख्य रूप से शुरु होता है, इसलिए लोग इसे छठ पूजा के नाम से पुकारते हैं।यह व्रत और पर्व इस अर्थ में अधिक महत्व का है कि यह मुख्य तौर पर बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोगाें  द्वारा आयोजित किया जाता है। यहां के लोग भारत के विभिन्न प्रदेशों में स्थाई और अस्थाई तौर पर निवास करते हैं और बहुत लोग विदेशों में भी जा बसे हैं, इसलिए वे लोग उन स्थानों पर भी इस पर्व को मनाते हैं। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसमें कृषि जनित अन्न,सब्जी, फल -फूल तथा गाय- भैंस पशु के दूध,घी, गोबर और नदी, सरोवर, पोखर आदि के जल से सूर्य की उपासना की जाती है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि घर द्वार की पूर्णतः सफाई की जाती है।व्रत करने वाले लोगों के द्वारा उपवास करने और फिर अस्ताचलगामी सूर्य एवं उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर उपासना के साथ 9वीं के दिन इस पर्व की समाप्ति होती है। इस पर्व की सबसे बड़...

छठ व्रत के महाप्रसाद

होशोहवास वाले कोमा के इन्साफ

#कन्नड़_फिल्म_अभिनेता स्व राजकुमार

बलिया जनपद अस्थाना दिवस