रामलिला
रामलीला
आज जब दलितों के नाम पर राजनीति होते देखता हूँ और समाज के एक वर्ग को दलित हितचिंतक बन हिन्दू देवी-देवताओं को कोसते देखता हूँ तो हँसी भी आता है और ऐसे लोगों की बुद्धि पर तरस भी जो ये तक नहीं जानते कि छुआछूत या जाति भेद सनातन धर्म का रचा नही है बल्कि स्वार्थ सीधी के लिए रचित एक राजनैतिक कुचक्र है। ऐसे में राम जी और शबरी मैय्या का मिलन याद आ जाता है।
राम की आधार सीता थी। सीता अर्थात पृथ्वी की पुत्री, जगत की आधार, सबका आलम्बन। आधार खोने से राम जड़-हीन हो व्याकुल हो उठे। वे चर-अचर सबसे पूछते फिरे -
"हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥"
तुलसीदास लिखते हैं कि राम सामान्य मनुष्यों की लीला कर रहे हैं अतः वे पूर्णकाम, आनन्द राशि, अजन्मा और अविनाशी हो कर भी मनुष्यों की भाँति आतुरता दिखा-दिखा कर विलाप कर रहे हैं -
"पूरनकाम राम सुख रासी। मनुजचरित कर अज अबिनासी॥"
सीता माता की खोज कठिन थी पर पहला संकेत जटायु ने दिया, दूसरा संकेत कबन्ध नामक दानव ने दिया। उसके उपरांत शबरी की कुटिया में उन्हें पम्पानगरी जाने का संकेत मिला।
शबरी भीलनी है, समाज की वर्ग-श्रेणी में नीचे की सीढ़ियों पर बैठी दरिद्र बुढ़िया। पर राम तो उससे ऐसे लिपटे पड़े हैं जैसे माता कौशल्या मिल गई हो। शबरी सदा-सदा से राम की भक्त है, उसने कभी सोचा तक न था कि राम-लक्ष्मण कभी साक्षात उसकी कुटिया में पधारेंगे। वह भाव-विह्वल हो झोपड़े में से ढूंढ कर जंगली बेर ले आती है और राम को चख-चख कर जूठे बेर खिलाती है और राम पूर्ण समर्पण से उसे प्राप्त करते हुए अघाते नहीं। शबरी की कुल-वंश-जाति-ज्ञान की निम्नता की बारम्बार स्वीकरोक्ति पर राम कहते हैं - माँ, जिस जाति, पाँति, कुल, धर्म, प्रसिद्धि, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुरता की तू बात करती है, इन सबके होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य ऐसा लगता है, जैसे बादल तो हो पर जलहीन हो। तू तो उन सबमें सबसे बड़ी है, तेरे जैसा भला और कौन है ?
"जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई॥
भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥"
छुआछूत की सोच और खानपान का भेद रखने वाले कुलीन लोगों के लिए तो यह प्रसंग आँखें खोल देने को पर्याप्त है जहाँ भगवान छुआछूत तो क्या, भीलनी के जूठे बेर खा कर उसे परमपद प्रदान कर देते हैं। अब इसके बाद ऊँच-नीच जैसी सोच रखने का पाप करना तो राम-द्रोह के अतिरिक्त और कुछ हो ही नहीं सकता।
राम वहाँ अपने मन की व्यग्रता भूल जाते हैं और आनन्दपूर्वक और विस्तार से शबरी को नवधा भक्ति का सन्देश देते हैं। शबरी की निश्छल भक्ति से आह्लादित हो राम उसे वह स्थान प्रदान करते हैं जो बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों को भी दुर्लभ होता है -जोगि बृंद दुरलभ गति जोई। तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई॥ धन्य है शबरी माई और धन्य हैं राम जो समाज के समक्ष समरसता और वर्ग-समानता का स्पष्ट सन्देश रखते हैं।
#संदीप_यदुवंशी
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