जय भीम की समीक्षा
जय भीम वास्तविक घटनाओं पर बनाई गई एक अच्छी फिल्म है। इस फिल्म में सभी वास्तविक नामों को बरकरार रखा गया है सिवाय मुख्य खलनायक के।
मुख्य खलनायक जिसका असली नाम "एंथनी सामी" है, उसे फ़िल्म मे "गुरुमूर्ति" नाम दिया गया है। इस प्रकार एक ईसाई विलेन को हिंदू वन्नियार बना दिया गया है ताकि जातिगत भेदभाव के एजेंडे को बढ़ाया जाए।
वास्तविक जीवन मे वो एक ईसाई उप-निरीक्षक था जिसने पीड़ितों को फंसाया और उन्हें प्रताड़ित किया था। लेकिन फिल्म में, उनका नाम, धर्म और जाति बदल दी गई है ताकि इसे ऊंची जाति के हिंदुओं द्वारा निचली जाति पर किए गए अत्याचारों के रूप में दिखाया जा सके।
इतना ही नहीं, ब्राह्मणों के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल यह बताने के लिए भी किया गया कि वे एक नीच अविश्वसनीय समुदाय हैं।
जय भीम फ़िल्म मे द्रविड़ राजनीति को खुश करने के लिए हिंदी विरोधी तत्व भी जोड़ा गया है। एक सीन में प्रकाश राज एक अफसर को हिंदी बोलने पर थप्पड़ मारते हैं। लेकिन फिल्म के हिंदी दर्शकों को परेशान न करने के लिए इस दृश्य को उसी फिल्म के हिंदी संस्करण में हटा दिया गया है।
फिल्म बिरादरी को हमेशा वास्तविक घटनाओं पर फिल्में बनाने की बुरी आदत होती है, लेकिन अपने घटिया एजेंडे को आगे बढ़ाने और हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए कुछ तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है।
कुछ साल पहले, बदायूं बलात्कार और हत्या मामले पर "आर्टिकल 15" नाम से एक फिल्म बनाई गई थी, जिसमें दोषियों को ब्राह्मण और पीड़ितों को दलितों के रूप में दिखाया गया था। लेकिन असल जिंदगी में आरोपी और पीड़ित दोनों ही ओबीसी जाति के थे। इस फ़िल्म ने भी नक्सलवाद और उग्रवाद को दलितों पर होने वाले अत्याचारों के दुष्परिणाम के रूप में भी सही ठहराया।
हाल के दिनों मे हिंदुओं में बढ़ी जागरूकता को देखते हुए हिंदूफोबिया को हाईलाइट करना और उसे दिखाना इस फ़िल्म का छिपा एजेंडा है।
Rashmi Kashyap की अंग्रेजी पोस्ट का हिंदी अनुवाद।
#संदीप_यदुवंशी
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