धनतेरस

 आज धनतेरस उत्सव है। एक सामान्य चलन था कि इस दिन झाड़ू खरीदते हैं। अब क्या झाड़ू खरीदने के लिए भी किसी त्यौहार की जरूरत होती है। हालांकि ये प्रतीकात्मक ही है लेकिन इस प्रतीक के गहरे अर्थ है। झाड़ू खरीदने का आशय स्वच्छता से है। घर और आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए झाड़ू की प्रतीकात्मक खरीदारी का चलन शुरु हुआ होगा। क्योंकि आगे दो दिन बाद दिपावली है। सब साफ सफाई करनी है तो धन तेरस को झाड़ू खरीदने का दिन बना दिया।  लेकिन अब बदलते बदलते बाजार ने इसे बर्तन, सोना चांदी और गाड़ियों की खरीदारी का त्यौहार बना दिया है। 


परंतु धनतेरस झाड़ू खरीदने का भी त्यौहार नहीं है। यह भगवान आरोग्य के देवता, नारायण स्वरूप भगवान धन्वंतरी की जयंती है। साफ सफाई के लिए सांकेतिक खरीदारी का दिन भी संभवत: इसलिए ही चुना गया होगा की स्वच्छता में ही आरोग्य है। इसलिए भगवान धन्वंतरी  जयंती को स्वच्छता से जोड़ा गया होगा। लेकिन आश्चर्य देखिए कि खरीदारी शेष रह गयी और भगवान धन्वंतरी को भूल गये। 


आज के दिन भगवान धन्वंतरी को याद करिए क्योंकि धन अकेले पैसा नहीं होता। असली धन है स्वास्थ्य। आरोग्यं सुख संपदां। बाजार के हाथों गिरवी होने से बचिए। त्यौहार और उत्सव को उसी रूप में मनाइये जो उसका वास्तविक उद्देश्य है। 


भारतीय धर्म और समाज दोनों अपभ्रंस में चला गया है। वह कुछ होना तो चाहता है लेकिन क्या होना है, उसे नहीं पता। उसकी सोच को बहुत हद तक बाजार ने प्रभावित कर दिया है और उत्सव त्यौहारों तक के नये अर्थ गढ दिये हैं


भगवान धन्वंतरी की पूजा करते हुए आज स्वच्छ और स्वस्थ जीवन के संकल्प लीजिए क्योंकि समुद्र मंथन से नारायण ने जो अमृतकलश प्राप्त किया था, वह और कुछ नहीं एक स्वस्थ्य और स्वच्छ जीवन ही है।


ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरये

अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणाय

त्रैलोक्यपतये त्रैलोक्यनिधये श्रीमहाविष्णुस्वरूपाय

श्रीधन्वंतरीस्वरूपाय श्री श्री श्री औषधचक्राय नारायणाय नमः॥

#संदीप_यदुवंशी 

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