आइए जाने छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमी को जाने

 आइए, छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानें।


कल से ही शुरु हो चुके चार दिनों तक चलने वाला छठ पर्व की शुरुआत नहाय- खाय (स्नान कर कद्दू की सब्जी और चावल भोजन करने से) होगी। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को यह व्रत मुख्य रूप से शुरु होता है, इसलिए लोग इसे छठ पूजा के नाम से पुकारते हैं।यह व्रत और पर्व इस अर्थ में अधिक महत्व का है कि यह मुख्य तौर पर बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोगाें  द्वारा आयोजित किया जाता है। यहां के लोग भारत के विभिन्न प्रदेशों में स्थाई और अस्थाई तौर पर निवास करते हैं और बहुत लोग विदेशों में भी जा बसे हैं, इसलिए वे लोग उन स्थानों पर भी इस पर्व को मनाते हैं। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसमें कृषि जनित अन्न,सब्जी, फल -फूल तथा गाय- भैंस पशु के दूध,घी, गोबर और नदी, सरोवर, पोखर आदि के जल से सूर्य की उपासना की जाती है।

इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि घर द्वार की पूर्णतः सफाई की जाती है।व्रत करने वाले लोगों के द्वारा उपवास करने और फिर अस्ताचलगामी सूर्य एवं उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर उपासना के साथ 9वीं के दिन इस पर्व की समाप्ति होती है।

इस पर्व की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें किसी पुरोहित, तंत्र -मंत्र, कर्मकांड आदि का कोई महत्व नहीं है। इसमें किसी काल्पनिक भगवान की उपासना नहीं है ,बल्कि प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देने वाले सूर्य ग्रह को ही भगवान मान लिया गया है। यह व्रत साक्षात सूर्य, ऊर्जा के प्रमाणिक स्रौत, की उपासना से जुड़ी है। इसमें एक ही साथ कृषि, पशु, जल एवं ऊर्जा के मुख्य स्रौत सूर्य को महत्व दिया जाता है।

       इस पर्व का कोई विवरण हमें न तो वेदों, उपनिषदों, धर्म- शास्त्रों, रामायण, महाभारत एवं स्मृतियों में मिलता है और न ही बौद्ध ग्रंथों एवं जैन धर्म ग्रंथों में मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता में भी सूर्य पूजा का कोई अवशेष नहीं मिला है। हां ,वैदिक काल में आर्यों के देवताओं की श्रेणी में सूर्य देवता को पांचवें स्थान पर रखा गया है और उसे पांच नाम से सूर्य,सवित्,मित्र,पूषन, और विष्णु के रूप में बार-बार याद किया गया है। किन्तु उनकी पूजा और उपासना विधि का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

                इस पर्व का विवरण हमें गुप्त काल 400ई से लेकर 16 वीं सदी के बीच लिखे गए पुराणों में मिलता है। हमें विष्णु पुराण,ब्रह्मवैवर्त पुराण,भगवत पुराण आदि ग्रंथों में मध्यकाल में इस व्रत का विवरण मिलते हैं। प्रतीत होता है कि गुप्तकाल के बहुत बाद ही यह व्रत शुरु हुआ था। लगभग पांच सौ वर्षों में धीरे -धीरे विकसित होकर यह व्रत आज बहुत ही व्यापक रूप में हमारे बीच उपस्थित है।


                 जय छठी मईया🙏❤

#संदीप_यदुवंशी

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