क्षण

 ❤

कम बरसों में कितने अधिक क्षण हैं 

जिनमें मिला जा सकता है 

छुआ जा सकता है किसी प्रिय की आत्मा को  

बिछड़ा जा सकता है 

जैसे गंध खोती है दिसंबर की गुलाबी हवा में 


मैं जो कांपता हुआ उगता हूँ किसी दरख़्त पर 

शाम तक किसी का कहानी हो जाता हूँ 

या फिर माटी की 


यह ख्याल पुराना पड़ता जाता है कि बहुत दिन गुज़ारे जा सकते हैं सिर्फ एक ही ऋतू में 

बहुत पहरों तक अपने मौन से आलाप हो सकता है 


सोचता हूँ , कैसा होता है 

नींद में कोई नाम पुकार लेना

मैं कोलाहल से निकल कर चुप में गिर पड़ता हूँ 


लम्बे दिनों की यात्रा में पास बैठा राहगीर पूछता है 

कैसे ठीक होता है रूँधा कंठ 

मैं हंसता हूँ 

कहता हूँ -

बहुत बार लम्बी यात्रा में लौट आता है स्वाद की स्मृति 

लौट आता है सुख 

बहुत बार नए दुःख का चेहरा पुराने दुखों से मिलने लगता है 


अक्सर पानी अपनी जगह दोहराने लगता है।

#संदीप_यदुवंशी 

https://sk4635686.blogspot.com/?m=1

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