आकस्मिक मौत
तकरीबन 10 दिनो पहले कीं बात है हमारे साथ कार्य करने वाले एक दोस्त के बड़े भाई ने फांसी लगाकर जान दे दिया
मुझें आश्चर्य यह हुआ की इतना पढ़ा लिखा इंन्सान जो खुद़ एक शिक्षक था
वह फाँसी कैसे लगा सकता है कितना भी भुलाने की कोशिश करता लेकिन दिमाग से यह बात बाहर ही नहीं निकल पा रहा था तकरीबन एक सप्ताह तक मैं यही सो रहा था की कैसे कोई फाँसी लगा सकता है।
लोग तरह-तरह के बाते करने लगे थे
मुझें बहुत बुरा लग रहा था और समय के अभाव में लिख नहीं पा रहा था सच कहूँ तो बात दिमाग में बैठ गया था कोई ऐसे कैसे कर सकता है लोग भी तरह तरह की बाते कर रहे थे।
आकस्मिक मौत सुनने के बाद व्यक्ति पीड़ा से पहले बेचैनी से घिर जाता है, कारण बहुत साधारण है और वो है एक असुरक्षा का भाव का अंदर घर कर जाना ।
बड़े बड़े सुपरस्टार, बिज़्नेसमैन और नेता जिनके पास खुद के जीवन को सुरक्षित रखने के तमाम संसाधन उपलब्ध रहते है, उनकी अकाल मृत्यु एक साधारण व्यक्ति को एक ऐसे आईने के सामने ढकेल देती है जिसमें वो खुद को देखने से भी डरने लगता है ।
सामाजिक संरचना ऐसी है इस समाज कि शंकित प्राणी अपने बारे में उतना व्यथित नही होता जितना अपने नहीं होने के कारण खुद पर आश्रित लोगों के भविष्य को देखकर होने लगता है फिर भी मैं अपने अनुभव से ये कह सकता हूँ कि ये सब एक अंधकार है जिसके बारे में सोचने के बाद भी कुछ नहीं मिलता है सिवाय अशांति के ।
आपके आसपास के लोग जो आज है , कल नहीं रहेंगे , एक दिन आप भी इन्ही लोगों में शामिल हो जायेंगे। ये दुःख बड़ा है, इसको बहुत बड़ा होने से अपने जीवन में रोकना होगा।
आदमी अच्छा हो सकता है बुरा हो सकता है ,डरपोक हो सकता है निर्भीक हो सकता है, ईमानदार हो सकता है बेईमान हो सकता है , वो चाहे तो कुछ भी हो सकता है या कुछ भी नहीं भी हो सकता है लेकिन वो नश्वर है और रहेगा, इसमें कोई शंका नहीं है
मृत्यु के बाद क्या होता है, इस पर बहस जारी है , लेकिन जो चला गया है उसको थोड़ा समय दे , वो उसका हक़ है । ये रेस बंद होनी चाहिये, किसी की मृत्यु का तमाशा नही बनना चाहिये, उसके निर्बल शरीर पर सर्कसबाज़ी सही नहीं।
ॐ शान्ति
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#संदीप_यदुवंशी
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