रजनीकांत सर "अन्नाथे"

 ऐसे तो मैं ज्यादा फ़िल्में देखता नहीं हूँ लेकिन कल वीकेंड छुट्टी तो 

साउथ की एक फिल्म देखी कल, "अन्नाथे"


साउथ की फिल्मों की खासियत ये है कि उनमें कहानी होती है और एक साथ बहुत सी कहानियाँ भी चलती हैं। इसलिए मुझे दक्षिण भारत का सिनेमा बहुत पसंद है। वो लोग प्रेज़ेंटेशन के साथ साथ स्क्रिप्ट पर भी बहुत काम करते हैं जो कि सबसे ज़रूरी होता है कनेक्ट करने के लिए।


अन्नाथे कहानी है भाई बहन की। भाई बहन के प्यार, एक दूसरे के लिए जान देने को आतुर रिश्ते की। एक भाई जिसकी दुनिया उसकी बहन ही है। एक ही सोच है, बहन। एक ही व्यवहार है, बहन। एक ही जीवन शैली है, बहन। जिस ट्रेन से बहन आती है उस ट्रेन के सारे यात्रियों के खाने पीने की व्यवस्था वो करता है हर बार। बहन के लिए रिश्ता देखने जाता है तो लड़के से कहता है, "चिंता मत करो हम तुम्हारी आँखों में आँसू नहीं आने देंगे।" ऐसे ऐसे सीन हैं जो हँसाते हैं और आपके सामाजिक टेबू को साइड से दो टुकड़े करके पटक देते हैं। 


मुझे इस दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता लगता है भाई बहन का। मैं बचपन से ही घर से दूर रहा हूँ पहले पढ़ाई के लिए और अब चंद सिक्कों के लिए 

बड़े भाई होने के बावजूद भी राखी में घर पर नहीं पहुँच पाता था मुझे तो याद नहीं की मेरी बहन ने कब राखी बाधी होगी। 

 लेकिन जब भी मैं उसको कुछ काम के लिए फोन करता हूँ

 तो एक छटके में दौड़कर कर देती। कभी कभी उसके शादी के विदाई की सोचता हूँ तो आँखो से आँसू आ जाते है। 


तो खैर...


अन्नाथे फिल्म कुछ आलोचकों को पसंद नहीं आई क्योंकि रजनीकांत को इस तरह से देखना उन्हें रास नहीं आया होगा। 


मुझे हर वक्त प्रेमी-प्रेमिका पति पत्नी वाली प्रेम कहानियाँ पसंद नहीं आती। भाई बहन के रिश्ते पर कम कहानियाँ बनती हैं। 


मैंने जाह्नवी में भाई बहन के रिश्ते का पूरा स्पेस रखा। क्या था दरमियाँ में तो एक कहानी है ही भाई बहन के रिश्ते पर। 


अन्नाथे फिल्म उन लोगों के लिए है जिन्हें इस तरह के रिश्तों में लाड़ आता हो। मैं चूँकि घर से दूर रहकर भी अपने बहन से बहुत जुड़ा हुआ हूँ इसलिए मुझे ये मेरी ही कहानी लगी।


ऐसी फिल्में अच्छी या बुरी कहाँ होती हैं, वो तो बस होती हैं क्योंकि उनको होना ही चाहिए।


रजनीकांत सर ही कर सकते थे। ज़्यादा कुछ है नहीं बोलने को।


बस एक संवाद है जो रह रहकर दिमाग में बैठ जाता है जब भाई अपनी बहन से कह रहा है कि; "जब पहली बार माहवारी आई थी तब तूने कैसे रो रोकर कहा था कि भैय्या बहुत खून बह रहा है! याद है ना तुझे! तो जब तू किसी से प्यार करती थी तब ये बात अपने भैय्या से क्यों नहीं कह पाई!"


इस सीन के लिए रजनी सर को सारे अवॉर्ड दे देने चाहिए अगर उनका कद किसी पुरस्कार से छोटा हो तब।


बाकी एकदम "टिपिकल रजनीकांत" फिल्म है इसलिए या तो कनेक्ट कर जाएँगे या कुछ नहीं।


मेरे लिए मोमेंट ही मोमेंट, अन्नाथे❤️

#संदीप_यदुवंशी 

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