तुम हो तों जेठ भी सावन है
अभी कुछ दिनों पहले मै स्टेशन पर गया ट्रेन पकड़ने के लिए मेरे ट्रेन का समय 12:30 बजे (दोपहर) था चुकी मैं समय से एक घण्टे पहले हीं पहुंच गया था इतफाक से बहुत बारिश हो रही थीं और अंधेरे जैसा माहौल हो गया था मैं भी एक खाली
स्थान देकर बैठ गया और अपना मोबाइल निकलकर और ईअर फोन लगा कर सोंग सुनने लगा
इतनें में एक लङका और लङकी को आते देखा जो बहुत ही खुबसूरत थे और देख कर लगा कि भगवान नें इन दोनों को एक दुसरे के लिए ही बनाया है कसम से उनको देखकर मैं कुछ सेकंड देखते रह गया और मेरे कॉलेजों के दिनों कीं याद आ गयी
वहीं बारिश और वो
इतफाक से दोनों ठीक मेरे बगल में आ कर बैठ गये अब मैंने अपने ईयर फोन का साउंड थोङा स्लो किया और अपने तिरछी नजर से देखने लगा दोनों आपस में बातें करने लगें कसम से उनकी बातों सुनने और देखने में बहुत हीं अच्छा लगने लगा
12बजे (दोपहर) हीं अंधेरा हो चला था बारिश के बाद वालीं ठंडी हवा से दोनों कांपने लगें थें अचानक लङकी ने आसमान कीं तरफ़ देखा और पूंछने लगीं " जानते हो?? "क्या"?? लङके ने पूछा ।
"यही कीं तुम सावन नहीं जानते, न ही जानते हो जेठ और आषाढ़ ।
तुमने तो पढ़ा भी नहीं होगा
'आषाढ़ का एक दिन' वरना जान पाते कि तपने के बाद भीगने का सुख कहने के लिए एक नई भाषा कीं जरूरत हैं।
लङका उदास हो गया,लङकी मुस्करानें लगीं "बोलो ना चुप क्यों हो इतना ही कह दो कि मैंने तुम्हारे जैसा हिन्दी साहित्य नहीं पढ़ा हैं बाबू" लङका हँसने लगा, उसकी आँखो चमकने लगीं "कैसे जान जातीं हो तुम कि मेरे दिल में क्या चल रहा है?"
अगले ही पल आसमान से बिजली चमकी, हवाएं कुछ और तेज हो गई। देखते हीं देखते बारिश कीं बौछार से आसमान सफेद पङ गया।
लङके ने झट से आगें बढ़कर लङकी को गले से लगा लिया,लङकी के होंठ कांपने लगें,लङके ने धीरे से कहा "पगली,प्रेम करने के लिए साहित्य पढ़ने कीं जरूर नहीं है,मैं तो इतना जानता हूँ कि जिंदगी में अगर तुम हो तों जेठ भी सावन है।
इतने सब के बीच मेरे ट्रेन का समय हो गया और मैं वहाँ से चल दिया।
#संदीप_यदुवंशी
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