उम्र के इस पड़ाव में

 "मुसाफ़िर कल भी था 

  मुसाफ़िर आज भी हूँ 

 कल अपनों कीं तलाश में था 

 आज अपनी तलाश मैं हूँ"!


हम उतने संजीदा तो नहीं हुए हैं 

कि परिवार के साथ सुबह चाय पियें 

और भविष्य की बातें करें..


न ही उतना लड़कपन रह गया है 

कि घर से यूँही बेपरवाह निकल जाएं..


26-30 के शुरूआती सालों में अजीब सी हलचल रहती है..

ना लड़कपन पूरा खत्म ही हुआ होता है..

न बुढ़ापे ने ही दस्तक दी होती है..

और तमाम दुनियादारी समझने के बावजूद हम 

दुनिया के सामने मेच्योर भी नहीं दिखना पसंद करते..


समझ ही नहीं आता दुनिया के सामने कौन सा चेहरा रखें..


वजन चूँकि बढ़ चुका होता है..और ईगो मानने को तैयार नहीं होता..


इसलिए अपनी 5 साल पुरानी फोटुएं प्रोफाइल पे लगा के..


असल जिंदगी में बच्चों से अपने लिए "अंकल" सम्बोधन सुनने के बीच..


बैलेंस बनाते हुए इस ट्रांजिशन को अनुभव करते हैं..


कॉलेज में शानदार क्रिकेट खेलते थे..

अब भी कभी जब बल्ला ग्रिप करने को मिलता है तो..

फ्लैशबैक से में चले जाते हो..


आँखों के सामने वो स्कूल का मैदान आ जाता है..


और तुम हवा में उस बल्ले से अपने फेवरेट २, ३ शॉट घुमा के बल्ला सोसाइटी के बच्चों को पकड़ा देते हो..


मन ही मन जानते हो कि..


अब भैया से अंकल वाला सफर शुरू हो चुका है..


पर आपके अंदर बैठा वो फ्लैशबैक वाला लड़का..


आपको बड़ा नहीं होने देता..


हम उतने संजीदा तो नहीं हुए हैं कि परिवार के साथ सुबह चाय पियें और भविष्य की बातें करें..


न ही उतना लड़कपन रह गया है कि घर से यूँही बेपरवाह निकल जाएं.. ❤

#संदीप_यदुवंशी 

https://sk4635686.blogspot.com/?m=1

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