#बिहार में बाढ़ के लिए कौन जिम्मेदार
कहाँ जाता है कि जब सत्ता लोगों को गुमराह करती हैं तो मिडिया लोगों को न सिर्फ जागरूप भी करतीं हैं बल्कि आवाज़ भी बनती है मगर बिहार में बाढ़ आना और उसके कारण जान जाना इतना सामान्य सी घटना हो गया है कि देश के मीडिया चैनलो कीं खबर ही नहीं बनती है,वैसे आज मुम्बई,केरला,चेन्नई, कश्मीर,पश्चिम बंगाल या कोई और राज्य में पानी भी लग जाए तो टीवी चैनलों का स्टूडियो पानी में तैरना लगता है,और सरकार लोगों के रेस्क्यू में सेना उतार देती है और कुछ तथाकथित लोग यहाँ पर लाखों और करोड़ों रुपये दान कर देते हैं,बात बिहार राज्य के बाढ़ कीं होंगी तों इन लोगो कीं आत्मा मर जातीं हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री जी से पूछा तो बोल देते हैं प्रकृति आपदा हैं कुछ नहीं कर सकते हैं।
खैर बिहार के लोगों को अब आदत हो चुकी है बाढ़ के साथ जीवन यापन करने की और सरकार मदद के नाम पर कुछ बाँट कर अपने आप को सबसे बङा मसीहा बनने कीं दिखावा करतीं हैं।
लेकिन बिहार में बाढ़ के मुख्य कारण क्या है मेरे हिसाब से शायद यही कारण है।
बिहार के करीब 74 फीसदी इलाके और 76 फीसदी आबादी बाढ़ की जद में हमेशा रहती है.
तबाही का प्रमुख कारण नेपाल से आने वाला पानी है। जाहिर है समस्या का कोई स्थाई हल नेपाल के साथ मिलकर ही नकाला जा सकता है। और इसके लिए बिहार और केंद्र सरकार दोनों को ध्यान देना होगा। मगर दुर्भाग्य से आजादी के बाद से अब तक कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए। जो थोड़ा बहुत काम हुआ है वो तटबंध बनाने को लेकर हुआ है मगर उल्टे इन सात दशकों में बिहार में बाढ़ के खतरे वाला इलाका बढ़कर 68 लाख हेक्टेयर हो गया है क्योंकि नदियों का लगातार विस्तार हो रहा है।
2008 के कोसी फ्लड के वक्त की भारी तबाही के बाद भी तमाम वादे किए गए. मास्टरप्लान, टास्क फोर्स बनाई गई. हर चुनाव में बाढ़ नियंत्रण के बड़े उपायों के वादे होते हैं लेकिन हालात तब भी जस के तस हैं।
आईआईटी कानपुर की एक स्टडी रिपोर्ट में भी तटबंधों को बाढ़ का अस्थायी समाधान ही माना गया है। जल संसाधन पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट मानते हैं कि नेपाल से सटे होने और नदियों की तलहट्टी में बसे होने के कारण यहां की भौगोलिक स्थिति में बाढ़ को टाला नहीं जा सकता। बल्कि बेहतर प्रबंधन से लोगों को हो रहे नुकसान में कमी जरूर लाई जा सकती है. छोटे-छोटे नहर बनाकर कम प्रभाव वाले इलाकों में पानी को डायवर्ट किया जा सकता है। इसके अलावा बड़े जलाशयों का निर्माण कर पानी को संरक्षित किया जा सकता है। इससे जहां ज्यादा इलाकों में सिंचाई की जरूरत पूरी की जा सकती है वहीं सूखे वाले इलाकों में पानी मुहैया कराया जा सकता है. साथ ही पीने के पानी के बढ़ते संकट को भी कम किया जा सकता है।
मगर ये सब तब होगा जब इस समस्या का समाधान सरकार के प्रथमिकता में आएगी। सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि हर साल बाढ़ बिहार के करोड़ों आबादी के जीवन को प्रभावित करती है मगर फिर भी इसका समाधान चुनावी मुद्दा नहीं बनाता। इसका सबसे बड़ा कारण है प्रोपेगेंडा। प्रोपेजेंडा के द्वारा यहां के लोगों के मन में यह बैठा दिया गया है कि बाढ़ यहां के लोगों के नसीब में लिखा है। इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। लोगों ने इस प्रोपेगेंडा को सत्य मानकर इसको अपना नसीब मान लिया है और इस परिस्थिति के साथ ही जीना सिख लिया है ।
#संदीप_यदुवंशी
Comments
Post a Comment